kanchan singla

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मेरा अंतर्मन

जैसे मेघ बरसते हैं 

और लाते है बहार।
जैसे दरिया बहता है
और ले आता है 
एक नया किनारा।
जैसे सूरज उगता है
और ले आता है
एक नया प्रकाश।
जैसे नदिया बहती है स्वच्छंद
और ले आती है खुशहाली।
जैसे बारिश की बूंदे बरसती है
और चुनती है अपने लिए 
ज़मीन का एक टुकड़ा।

वैसे ही मैं चुनती हूं 
अपने लिए मेरा अंतर्मन।



- कंचन सिंगला ©®
लेखनी प्रतियोगिता -28-Nov-2022

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4 Comments

Gunjan Kamal

05-Dec-2022 08:01 PM

शानदार

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बहुत ही सुंदर

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Anuradha sandley

29-Nov-2022 10:05 AM

बहुत खूब

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